ISSN: 2277-260X 

International Journal of Higher Education and Research

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मोहे रँग दे ओ रंगरेज़— अवनीश सिंह चौहान

rangrez-1फागुन का सुंदर, सुहावना एवं मनभावन महीना हो और होली का हुड़दंग न हो, रंग-गुलाल की बौछार न हो, फाग-राग न हो, मेल-मिलाप न हो, हास-परिहास न हो, भला ऐसा भी कभी हो सकता है। कम-से-कम ऐसा भारत भूमि— "भलि भारत भूमि" (कविकुल-कमल बाबा तुलसीदास) पर तो सम्भव नहीं लगता— वह भी तब जब ऋतुराज प्राणवान हों, प्रकृति आभावान हो, वसुंधरा मुस्करा रही हो, फूल पुष्पित हो रहे हों, आम बौरा रहे हों, फसलें पक रही हों और गाँव-घर-खेत-शहर में आनंद के गीत गाए जा रहे हों। साथ-संग के गीत, रंग के गीत, उमंग के गीत, तरंग के गीत— "आज न छोड़ेंगे बस हमजोली/खेलेंगे हम होली" (फिल्म: कटी पतंग, 1971), "होली के दिन दिल खिल जाते हैं" (फिल्म: शोले, 1975), "हो रंग बरसे भीगे चुनरवाली रंग बरसे" (फिल्म: सिलसिला, 1981), "होरी खेलें रघुवीरा अवध में" (फिल्म: बाग़बान, 2003), "आज बिरज में होरी रे रसिया/ होरी रे रसिया, बरजोरी रे रसिया" (आचार्य मृदुलकृष्ण शास्त्री द्वारा गाया गया लोकगीत, 2011), "आज तुम्हारी मस्ती में बहुरंगी रंग भरा/ लाल, गुलाबी, बासंती, पीला, लाल, हरा" (मयंक श्रीवास्तव, देशबंधु होली विशेषांक), "मन की गांठें खोल/ घोल अब रँग में रंग हजार" (वीरेंद्र आस्तिक, 'दैनिक हिंदुस्तान', 28 फरवरी 1988), "धनी हो गयी लवंगिया की डार/ लचक चली फागुन में/ पिया मैं तो बसंती बयार/बहक चली फागुन में" (बुद्धिनाथ मिश्र का मनोज तिवारी द्वारा गाया गीत), "आज है रंगों की बौछार/लो आया होली का त्यौहार" (पूर्णिमा वर्मन, 'अभिव्यक्ति होली विशेषांक'), "हर कड़ुवाहट पर जीवन की/ आज अबीर लगा दे/ फगुआ-ढोल बजा दे" (अवनीश सिंह चौहान, 'टुकड़ा कागज़ का', 2013) आदि। इसी क्रम में यूट्यूब पर चर्चित गीतकार, लेखक, गायक, संगीतकार एवं फिल्म निर्देशक संदीपनाथ द्वारा सृजित एक गीत— 'रंगरेज़' रिलीज हुआ है।

 

'रंगरेज़' गीत, जिसके फिल्मांकन के लिए आमजन से जुड़ी कस्बाई बस्ती को चुना गया है, एक प्रशिक्षित युवा कलाकार पर फिल्माया गया है। इस भक्तिपरक गीत के वीडियो में यह अलमस्त युवा कलाकार (रंगसाज) निश्छल भाव में स्थित हो अपनी तूलिका से कैनवस पर सुन्दर रंग भरता दिखाई पड़ता है। गीत की शुरुवात मकान मालिक द्वारा किरायेदार (उक्त रंगसाज़) को दिए गए आदेश— "तुम्हें यह मकान खाली करना होगा" से होती है। सहज भाव से रंगसाज़ आदेश के अनुपालनार्थ अपनी गर्दन हिलाकर सहमति जताता है और सीढ़ियाँ उतरते हुए नई मंजिल, नए आशियाने की ओर चल पड़ता है। धीरे-धीरे सीढ़ियाँ चढ़ता है, मित्र से आश्रय गहता है और अपनी मस्ती में जिंदगी के रंग भरता है। साथ में मद्धम-मद्धम संगीत बजता है, जोकि भावक के मनोमष्तिष्क पर सीधा असर डालता है। सुर खुलते हैं। गीत के बोल रंगसाज़ के हृदय में उठ रहे भावावेग को बड़ी साफगोई से प्रार्थना, याचना और कामना के रूप में उद्घाटित करने लगते हैं— "ओ रंगरेज़, तेरे रंग में रंग जाऊँ मैं/ थोड़ा काला, थोड़ा उजला हो जाऊँ मैं/ ओ रंगरेज़/ मेरे रंगरेज़/ रँग-रे-ज़।" 'ओ रंगरेज़'— इस परमात्मारूपी रंगरेज को अपना मानकर उसके रंग में रंग जाना, एक बहुत बड़ा भाव है। बड़ा इसलिए कि ऐसी स्थिति में 'मेरे-तेरे का भाव' समाप्त हो जाता है और भावक उस परम सत्ता से एकाकार हो जाता है। दूसरे अर्थ में कहा जा सकता है कि रंगसाज़ अपनी तूलिका से जीवन के रंग वैसे ही भरना चाहता है जैसे स्वयं परमात्मारूपी रंगरेज़ इस ब्रह्मांड में स्थित 'सूरज', 'चँदा', 'गंगा', 'जमुना', 'जवानी', 'कहानी' आदि को अपनी अद्भुत कूँची से भरता आया है।

 

इस रंगभरी सृष्टि के आदि और अंत परम दयालु 'रंगरेज़' की दिव्य क्षमताओं से भलीभाँति परिचित यह रंगसाज़ (गीतकार) अपने ढंग से उसकी वंदना करता है— "तेरी आन बड़ी रंगरेज़ा/ तेरी शान बड़ी रंगरेज़ा/ तू मालिक है रंगरेज़ा/ तू सेवक है रंगरेज़ा/ तू आवाजें रंगरेज़ा/ तू ख़ामोशी रंगरेज़ा/तू मेरा है रंगरेज़ा/ तू सबका है रंगरेज़ा।" यानी कि वह असीम रंगमय परमात्मा सब कुछ है, सबका है और सब कुछ करने की अनुपम सामर्थ्य रखता है। यह सब जान-समझकर रंगसाज़ (गीतकार) भाव-विव्हल है। कातर ह्रदय से वह उसे 'रंगरेज़', 'रंगरेज़', 'रंगरेज़', 'रंगरेज़' कहकर पुकारने लगता है। उसके भीतर कृतज्ञता और विनम्रता का अखण्ड भाव हिलोरें लेने लगता है। वह उसका शुक्रिया अदा करता है, वह उसका गुणगान करता है, कुछ इस तरह से— "तेरे रँग का मैं शुक्रिया करूँ/ तेरे ढँग का मैं इल्तिज़ा करूँ/ तेरे नाम का मैं सदका किया करूँ/ तेरे काम का ख़ुतबा पढ़ा करूँ।" वह भाव-विभोर हो जाता है। उसे सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड परमात्मा के अद्भुत रँगों सजा दिखाई पड़ने लगता है— "तूने रंग डाला है सूरज/ तूने रंग डाला है चँदा/ तूने रंग डाली है गंगा/ तूने रंग डाली है जमुना/ तूने रंग डाली है जवानी/ तूने रंग डाली है कहानी।" उसकी जीवन-दृष्टि बदल जाती है। उसे यह चराचर रंगों का उत्सव मनाता दिखाई पड़ता है। उसका मन इस रंगोत्सव में "साथ-साथ रंग" जाने को करता है। इधर फिल्मांकन में रंगसाज़ भी बखूबी अपनी कूँची चलाता है, रंगों को बिखेरता है और आनंदित होता है। इस रंगोत्सव में रंग बरसने लगते हैं और वह रंगों में कुछ इस प्रकार से "नहा" जाता है कि देखते बनता है। "भवानी शंकरौ वन्दे श्रद्धा विश्वास रूपिणौ/ याभ्यां बिना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्" (बालकाण्ड/ रामचरितमानस)— लब्बोलबाब यह कि रंग, रंगरेज और रंगरेज़ा जैसे बहुअर्थी शब्दों को जीव, जगत एवं जगदीश्वर से जोड़कर इस गीत में श्रद्धा, विश्वास एवं भक्ति का अतुलनीय सन्देश दिया गया है।

 

प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) में जन्‍में और धामपुर, मुरादाबाद एवं बरेली में पले-बढ़े मेरे प्रिय मित्र संदीपनाथ एक उम्दा इंसान हैं। कम उम्र में करियर शुरु करने वाले बॉलीवुड के इस चर्चित फिल्म गीतकवि ने कई हिट फिल्मों— 'भूत', 'पेज थ्री', 'सरकार', 'कॉरपोरेट', 'सांवरिया', 'फैशन', 'जेल', 'पान सिंह तोमर', 'साहेब बीवी और गैंग्सटर', 'बुलेट राजा', 'आशिकी-2' और 'सिंघम रिटर्न' आदि को अपने बेहतरीन गीत दिए हैं।

 

प्रत्येक गीत की अपनी खूबियाँ और अपनी सीमाएँ होती हैं, इससे इंकार नहीं किया जा सकता है। फिर भी, इस उल्लासमय बहुरंगी वातावरण में आस्थावान भारतीय समाज और उसकी मिली-जुली संस्कृति की लोकमंगलकारी भावना को सूफिया अंदाज में व्यंजित करते इस भावप्रवण गीत के सार्थक सृजन, संतुलित गायन, मधुर संगीत, आकर्षक अभिनय एवं बेहतरीन फिल्मांकन के लिए संदीप जी और उनकी टीम— अरुणांश शौक़ीन, हैरी खालसा एवं सोमा संदीप नाथ को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।

 

आप भी सुनिये इस गीत को: https://www.youtube.com/watch?v=BNOnvhQHvjs&feature=share


abnish-10लेखक:


अवनीश सिंह चौहान
संपादक : पूर्वाभास


Rangrez: Sandeep Nath, Arunansh Shaukeen, Harry Khalsa, Soma Sandeep Nath. Reviewed by Abnish Singh Chauhan

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