ISSN 2277 260X   

 

International Journal of

Higher Education and Research

 

 

 

Blog archive
टुकड़ा कागज़ का के बहाने

अवनीश सिंह चौहान का नवगीत संग्रह 'टुकड़ा कागज का' पढ़ते हुए मुझे श्रीप्रकाश मिश्र की बात याद आई, इसे पढ़कर लगा कि इसमें संग्रहीत जो गीत हैं वे समकालीन हिन्दी कविता के कथ्य और तथ्य से बहुत गहरे जुड़ते नजर आते हैं। इन गीतों में न तो कोरी भावुकता है न कोरी बौद्धिकता, जिस तरह निराला के बाद की कविता की चर्चा करते वक्त हम अज्ञेय, मुक्तिबोध, नागार्जुन, रघुवीर सहाय, शमशेर, धर्मवीर भारती, केदारनाथ सिंह, कुंवर नारायण, श्रीकांत वर्मा, धूमिल वगैरह का नाम धड़ाधड़ लेते जाते हैं वैसे गीतकारों की कोई श्रंखला नहीं बन पाती, किन्तु दिनेश सिंह, वीरेंद्र आस्तिक, बुद्धिनाथ मिश्र, कुँवर बेचैन, कैलाश गौतम, यश मालवीय, सुधांशु उपाध्याय आदि की एक अलग परम्परा जरूर दिखाई पड़ती है जिसने गीत-नवगीत को समकालीन कविता जैसी चुनौतियों के समकक्ष खुद को उभारा। … समकालीन हिन्दी नवगीत विधा में अवनीश सिंह चौहान का यह संग्रह और इसमें संग्रहीत गीत एक उपलब्धि और योगदान के रूप में जाने जायेंगे। 


- श्री रंग, वरिष्ठ कवि एवं आलोचक, इलाहाबाद, उ. प्र.


 tkk-1

5591 Views
Comments
()
Add new commentAdd new reply
I agree that my information may be stored and processed.*
Cancel
Send reply
Send comment
Load more
International Journal of Higher Education and Research [-cartcount]