ISSN: 2277-260X 

International Journal of Higher Education and Research

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रामनारायण रमण कृत नदी कहना जानती है पर साहित्यिक चर्चा

img-20180311-124345रायबरेली। भीतर से बाहर तक नदी के अविरल, लयबद्ध, कल्याणकारी भाव को समोये वरिष्ठ साहित्यकार श्रद्देय रामनारायण रमण जी का सद्य: प्रकाशित नवगीत संग्रह 'नदी कहना जानती है' का भव्य लोकार्पण लेखागार सभागार में रविवार, 11 मार्च को सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम का शुभारंभ माँ सरस्वती की पूजा-अर्चना एवं अतिथियों के स्वागत-सत्कार से हुआ। 
 
इस उत्कृष्ट कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार एवं आलोचक डॉ ओमप्रकाश सिंह  ने की, जबकि दिल्ली से पधारे युवा कवि एवं आलोचक डॉ अवनीश सिंह चौहान मुख्य अतिथि एवं  सुपरिचित ग़ज़लगो नाज़ प्रतापगढ़ी  विशिष्ट अतिथि रहे। डॉ ओमप्रकाश सिंह ने कहा कि रमण जी के गीत समकालीन सन्दर्भों को मजबूती से व्यंजित कर रहे हैं और उनमें संवेदना की गहराई है। उन्होंने मजदूर, किसान, गांव, शहर, बेरोजगारी जैसे विषयों को अपने नवगीतों में बखूबी पिरोया है। डॉ अवनीश चौहान ने रमण जी के तमाम नवगीतों के अर्थ खोलते हुए उनकी सुंदर अनुभूतियों की सराहना की और कहा कि उनके साधु स्वभाव का प्रभाव उनके टटके गीतों में भी परिलक्षित होता है। उन्होंने बताया कि रमण जी के गीतों की भाषा प्रयोगधर्मी है और उनके शब्द गहन एवं नवीन हैं। नाज़ प्रतापगढ़ी ने रमण जी के नवगीतों में उर्दू भाषा के शब्दों के संतुलित प्रयोग एवं रचना कौशल की सराहना की। सुविख्यात गीतकार डॉ विनय भदौरिया ने रमण जी के शीर्षक गीत 'नदी कहना जानती है'  की विस्तार से चर्चा की और उनके गीतों को प्रेम में पगा हुआ बताया। सुप्रसिद्ध आलोचक एवं साहित्यकार रमाकांत  ने रमणजी को सर्वथा मौलिक गीतकार मानते हुए कहा कि उन्होंने जो भी लिखा वह अनुभवजन्य सत्य है, इसे पोस्ट-ट्रुथ के युग में भी नाकारा नहीं जा सकता।   
 
चर्चा-परिचर्चा में अन्य साहित्यकारों, विचारकों, आलोचकों ने एक स्वर में कहा कि रमण जी के ताज़ातरीन नवगीत साहित्य, समाज, संस्कृति को पूरी वस्तुनिष्ठता एवं मौलिकता से प्रस्तुत करते हैं। रायबरेली के सशक्त रचनाकार एव साहित्यप्रेमी सर्वश्री आनंदस्वरूप श्रीवास्तव, राजेन्द्र बहादुर सिंह राजन, शिवकुमार शास्त्री, सन्तोष डे, प्रमोद प्रखर, डॉ राकेश चन्द्रा, हीरालाल यादव, दुर्गाशंकर वर्मा, हीरालाल यादव, डॉ राज आदि के सार्थक वक्तव्यों ने लोकार्पण समारोह को जीवंत बना दिया। मंच का शानदार संचालन चर्चित साहित्यकार जय चक्रवर्ती जी एवं डॉ विनय भदौरिया जी ने संयुक्तरूप से किया। आभार अभिव्यक्ति कार्यक्रम संयोजक रमाकान्त जी ने की।


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